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यह संसार बड़ा विचित्र है। अपना दुःख बाँटने जो निकलता है उसे बहुधा निराशा ही मिलती है क्योंकि जो दिखता है बहुधा वह प्रवंचना ही होती है। मनुष्य अपने दुःखों पर अपनी संकल्पशक्ति तथा जिजीविषा से ही विजय प्राप्त कर पाता है। इसलिए अपने दुःखों को यथासम्भव अपने अंतस में सँजोकर रखना भी एक जीवन … Continue reading Thought

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ये कंटीली पगडंडियाँ , ये पथरीले रास्ते , ये आँधियों के थपेड़े और समय के कर्कश प्रहार ! सब निर्जीव हो जाते हैं जब कोई इन दुर्गमताओं में हमसफर हो जाता है !

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यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि शीर्ष की नॉक बहुत पतली होती है। उस पर स्थायित्व के लिए बहुत संतुलन की आवश्यकता होती है।

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जब तक उस परमात्मा ने आँखें दी हैं , बहते हुए झरने , कल-कल करती नदियाँ ,चहकते पंछी और समंदर की लहरों को देखकर या फिर उनके सपने बुनकर क्यों न पलों को जीवन्त बना लें। जब तक प्रभु ने सूंघने की शक्ति दी है , वासंती खुशबू को , उपवन की सुगंध को , … Continue reading Thought

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यह इस देश का दुर्भाग्य है कि  आज भी यह देश जाति-प्रथा की कुत्सित जंजीरों में जकड़ा हुआ है। भगवान कृष्ण ने कहा था -" चातुर्वण्यं  मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः !"  अर्थात गुण तथा कर्म के आधार पर चार वर्णों की संरचना प्रभु ने की जिसको इसी देश में जन्म से जोड़ कर सब कुछ नष्ट … Continue reading My Thoughts

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कभी-कभी सोचता हूँ धर्म क्या है ? बचपन में पढ़ा था कि Man's calling of one's duty is called Dharma . धर्म की इस व्याख्या को आज भी मेरा मन इतना ही प्रासंगिक मानता है जितना कि बचपन में मानता था। जगह-जगह हो रहे विचारों के द्वंद्व और पनपती घृणा। कभी-कभी सोचता हूँ यह कैसा … Continue reading My Thoughts

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पद्म्श्री श्री गोपाल दास नीरज विगत तीन दशकों में हिंदीजगत के सर्वश्रेष्ठ कवि है। उनकी कविताएँ मैं बचपन से सुनता आया हूँ। मेरे पिताश्री डा० द्वारिका प्रसाद सक्सेना N.R.E.C. Post Graduate College , Khurja में हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे। उन दिनों कालिज में प्रत्येक वर्ष वे कवि-सम्मेलन कराया करते थे। नीरज जी प्रत्येक वर्ष … Continue reading My Thoughts

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परिलब्धियाँ तथा उपलब्धियाँ कभी भी एकाकी नहीं होतीं। उनमें न जाने कितनी निकटस्थ भावनाओं तथा आत्मीय जनों का सहकार तथा सहयोग छिपा होता है। माता-पिता जिस निःस्वार्थ वात्सल्य प्रेम की मधुरतम फुहार से जीवन को अभिसिंचित करते हैं , अर्द्धांगिनी किस तरह गृहस्थ आश्रम को तपोभूमि बना देती है , गुरुजन तथा अग्रजों का आशीष … Continue reading My Thoughts

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उन सपनों का महत्त्व नहीं जो सुप्तावस्था में दिख जाते है ! महत्व तो उन सपनों का है जो जाग्रत अवस्था में देखे और बुने जाते हैं !

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दूध को निरन्तर मथने या बिलोने से उसके सार- तत्व गुण मक्खन के रूप में उत्पन्न हो जाते हैं। 'गो' का अर्थ है अंधकार या अज्ञान और 'पी ' का अर्थ है पीना। अर्थात जो अंधकार रूपी अज्ञान को पी जाय उसे गोपी कहते हैं। माखनचोर भगवान कृष्ण गोपियों के मक्खन को चुराकर मानो समस्त … Continue reading My Thoughts