जब तक उस परमात्मा ने आँखें दी हैं , बहते हुए झरने , कल-कल करती नदियाँ ,चहकते पंछी और समंदर की लहरों को देखकर या फिर उनके सपने बुनकर क्यों न पलों को जीवन्त बना लें। जब तक प्रभु ने सूंघने की शक्ति दी है , वासंती खुशबू को , उपवन की सुगंध को , पुष्पों की महक को क्यों न महसूस करें या अपने जीवन में बसा लें। कठिन से कठिन समय में भी प्रभु के ये वरदान हमसे कोई छीन नहीं सकता। जिसे निकटता से देख भी न पाएं , या जिसकी सुगंध को पास जाकर भी वरण न कर पाएं तो उसे आत्मसात करने का उपक्रम भी जीवंतता है। इस धन को प्रभु ने देकर मनुष्य को धन्य किया है। मुसाफिर तो सभी हैं। किसी न किसी प्रवंचना में कैद मुसाफिर !