अन्तस् में पलते विचार जब अन्तश्चेतना का सम्पुट पाकर शब्दों को अंगीकार करते हैं तो सार्थक , संवेद्य एवं सजीव काव्य का सृजन होता है। ऐसा काव्य स्वतः ही न जाने कितने लोगों के ह्रदय से अपना साम्य और घनिष्टता स्थापित कर लेता है और हृदयंगम बनकर उभरता है। काव्य रचना भी स्वतः होने वाली एक अद्भुत घटना है। वस्तुतः यह ह्रदय में प्रवाहित होती स्रोतस्विनी की अविरल धारा के रूप में प्रस्फुटित होती है। इसका उद्गम और प्रवाह् सचमुच गहरे तथा अनूठे आनंद की अनुभूति का कारक होता है जिससे न केवल रचनाकार अपितु इसे आत्मसात करने वाले सुधीजन भी आत्मविभोर हो जाते है। इसी कारण यह साहित्य के स्वरुप को ग्रहण कर कालजयी बनने की सामर्थ्य रखता है।
प्रस्तुत हैं मेरे अन्तस् में जन्म लेती मेरी कुछ अनुभूतियाँ – Poem Blog