दिले-इल्तजा :

इतना ख़ामोश तो मत रहा कर , ख़ुद से कभी बात कर लिया कर ! ज़िन्दगी तो ग़मों का समन्दर है , ख़ुद को सफ़ीना बना लिया कर ! अपने तो अक्सर ग़ैर हो जाते हैं , ग़ैरों को ही गले लगा लिया कर ! मंज़िलों का क्या वो दूर रहती हैं , राहों को … Continue reading दिले-इल्तजा :

ज़िन्दगी की कशिश :

मेरी ख़ामोश सदायें तो बहुत दूर तक गयीं , उसे बेख़बर ही रहना था वो बेख़बर ही रहा ! जो मोतबर हुआ मेरे काँधे पे सफ़ीना रखकर , शोहरत के बाज़ार में दिल-आज़ार ही रहा । हवाओं में एक पैग़ाम था जो मुझे छूता रहा , एक साया मेरे ज़ेहन में बहुत देर तक रहा … Continue reading ज़िन्दगी की कशिश :

प्रकृति कहती है :

ये जीवन लगता जैसे हो लहरों का प्रत्यावर्तन , लहरों का उत्कर्षण ज्यों सुख-दुःख का आवर्तन , तट का संश्लेषण करता मर्यादाओं का निर्धारण , स्थित-प्रज्ञ सिंधु करता प्रखरता से ये उद्बोधन ! नदिया कहती प्रवाह ही है जीवन का चिर-तत्व , जल-धारा का आवेग मानो जिजीविषा का सत्व , पाषाणी उद्गम से निकला निश्छल … Continue reading प्रकृति कहती है :

दौरे-रहगुज़र :

जितने दिन उनके ग़म भुलाने में लगे , उतने बरस ये वक़्त गुज़ारने में लगे ! आँधियों का क्या वो आती-जाती रहीं , ज़माने खुशियों के ख़्वाब आने में लगे ! जिन गुलों को खिलाया लहू से अपने , चन्द लम्हे उनकी ख़ाक उड़ाने में लगे ! याद आयी जब नौबहार की बादे-सबा , तब … Continue reading दौरे-रहगुज़र :

फ़ल्सफ़े :

जानने बूझने से  अब यहाँ  कुछ नहीं होता , आदमी ज़मीं की  तरह  बावफ़ा  नहीं होता ! चाहे  जितनी सावन  की बरसातें ले आओ , गर्म रेत पर बूँदों का कोई निशाँ नहीं होता ! व्यर्थ है बस्ती उजाड़ने वालों को समझाना , ज़िंदा  लाशों में सृजन का  माद्दा नहीं होता ! जो दिन-रात डूबे  … Continue reading फ़ल्सफ़े :

चुलबुली धूप :

धूप रोज़ आसमाँ से मेरे आँगन में उतर  आती है , जाने कितनी ख़्वाहिशों की इबारत लिख जाती है ! जाने क्यूँ उसने मुझे अपना मसीहा बना लिया है , मेरे दरो-दीवार पे उल्फ़त के निशाँ छोड़ जाती है ! रोज़  देखता हूँ  उसे पास  आते और दूर जाते हुए , वो चुलबुली सी फिर … Continue reading चुलबुली धूप :

आवारा बादल :

बादलों का क्या ये तो  बे-मौसम भी चले आते हैं , कभी बरसते हैं कभी बरसने का झाँसा दे जाते हैं ! इन्हें यक़ीं है कोई इनसे ज़िरह कभी नहीं करेगा , इसीलिए आँधियों के साये में बरबादी दे जाते हैं ! अपनी शौक़े-फ़ितरत में ये बेख़ौफ घूमते रहते हैं , अपने ज़ुल्मों-सितम से ये … Continue reading आवारा बादल :

अज़ीब दिलक़शी :

यूँ ही तन्हाई में हम दिल पे सितम करते हैं , तुझको लिखते हैं मगर  उसको मिटा देते हैं ! ये तो सच है कि ज़िन्दगी दूर चली आयी हैं , फिर  भी माज़ी को हम  अब भी सदा देते हैं ! वो  हवाएं तो अब  गुलशन में नहीं आती हैं , फिर  भी जज़्बातों … Continue reading अज़ीब दिलक़शी :

चेतना-शून्य आँधियाँ :

आँधियाँ अक्सर मदहोश होती हैं , उजाड़ देती हैं अनगिनत गुलशन , तोड़ देती हैं अनगिनत सपने , मिटा जाती हैं सृजन की लकीरें , बहा ले जाती हैं भविष्य की आशाएं , नहीं देखती झूठ और फ़रेब , नहीं जानतीं सत्य की सीमाएं , अनजान रहती हैं अंधी स्वार्थपरता से , बेख़बर रहती हैं … Continue reading चेतना-शून्य आँधियाँ :

वीरान हवेली :

जहाँ कभी रोशनी का परचम था , वहाँ धड़कनों में सुलगते हैं रूह के ग़म , अँधेरों के किरदार अक्सर खेलते हैं , रात के रूखे-सूखे पत्तों से , बेनूर हसरतें पहरा देती हैं , अश्कों के रिसते कतरों का , कुछ बासी लम्हे रुककर देखते हैं , जिस्मों के ईंधन में तपे रिश्तों को … Continue reading वीरान हवेली :