मेरी ख़ामोश सदायें तो बहुत दूर तक गयीं ,
उसे बेख़बर ही रहना था वो बेख़बर ही रहा !
जो मोतबर हुआ मेरे काँधे पे सफ़ीना रखकर ,
शोहरत के बाज़ार में दिल-आज़ार ही रहा ।
हवाओं में एक पैग़ाम था जो मुझे छूता रहा ,
एक साया मेरे ज़ेहन में बहुत देर तक रहा !
गुज़रती रही ज़िन्दगी ख़िलवते-ग़म के साथ ,
जो शख़्स राहबर बना गुमराह करता रहा !
जाने क्यों धड़कनें तमाम उम्र बेचैन सी रहीं ,
वो कौन मुन्तज़िर था जिसका इंतज़ार रहा !