परिलब्धियाँ तथा उपलब्धियाँ कभी भी एकाकी नहीं होतीं। उनमें न जाने कितनी निकटस्थ भावनाओं तथा आत्मीय जनों का सहकार तथा सहयोग छिपा होता है। माता-पिता जिस निःस्वार्थ वात्सल्य प्रेम की मधुरतम फुहार से जीवन को अभिसिंचित करते हैं , अर्द्धांगिनी किस तरह गृहस्थ आश्रम को तपोभूमि बना देती है , गुरुजन तथा अग्रजों का आशीष किस प्रकार जीवन-निर्माण में सहायक होता है और संगी-साथियों का बहुधा न दिखने वाला सहकार किस प्रकार नए-नए सोपानों का सृजन करता है , ये सभी उन परिलब्धियों तथा उपलब्धियों की वास्तविक थाती होते हैं।