पद्म्श्री श्री गोपाल दास नीरज विगत तीन दशकों में हिंदीजगत के सर्वश्रेष्ठ कवि है। उनकी कविताएँ मैं बचपन से सुनता आया हूँ। मेरे पिताश्री डा० द्वारिका प्रसाद सक्सेना N.R.E.C. Post Graduate College , Khurja में हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे। उन दिनों कालिज में प्रत्येक वर्ष वे कवि-सम्मेलन कराया करते थे। नीरज जी प्रत्येक वर्ष कवि सम्मेलन में आते और मुझे उनकी कविताओं को सुनने का अवसर मिलता। वे पिताश्री का बहुत सम्मान करते थे। अक्सर घर पर भी मुझे उनकी कविताओं को सुनने का सौभाग्य मिला। “ कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ” , ओ मेरे भैया पानी दो , पानी दो गुड़धानी दो ” , “देखती ही रहो आज दर्पण न तुम ” , आदमी को आदमी बनाने के लिए , जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए , और लिखने को कहानी प्यार की , स्याही नहीं आखों वाला पानी चाहिये ” , “अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई , मेरा घर छोड़ सारे शहर में बरसात हुई ” , ” इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में , लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में ” , खुशबू सी आ रही है जाफरान की , खिड़की खुली हुई है उनके मकान की “,” हारे हुए परिंद जरा उड़ के देख तू , आ जायेगी जमी पे छत आसमान की ” , ” चन्द खिलौने टूट जाने से , बचपन नहीं मरा करता है ” , ” एक दिन आएगा जब ये राजपथ जनपथ बन जाएगा ” आदि अमर रचनाओं के महान कवि नीरज जी हिंदी मंच के सर्वश्रेष्ठ कवि है , इसमें कोई संदेह नहीं है। उनका सस्वर कविता पाठ हिंदी कविता के प्रेमियों के लिए एक अमिट यादगार के रूप में सदैव अविस्मरणीय रहेगा।सीधी-सादी भाषा में काव्य का रसपान कराते-कराते ही गूढ़तम बात कह देना उनकी विशेषता है । वे केवल रूमानी कवि नहीं हैं । उनकी कविता का विस्तार सभी विषयों पर समान अधिकार से है । पंडित वीरेन्द्र मिश्र के साथ उन्होंने दशकों तक हिंदी मंच को धन्य किया। हिंदी साहित्य के लिए अनुपम योगदान हेतु नीरज जी सदैव स्मरणीय रहेगे।