एक विचार यह भी :

कभी-कभी सोचता हूँ कि संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जो कुछ न कुछ अभिव्यक्त न करता हो। बस ये तो हम पर ही निर्भर करता है कि हम इस अभिव्यक्ति को कब और कैसे जान पाते हैं,उससे कैसे सहकार करते हैं। यह अभिव्यक्ति कब हमारे अंतस को आंदोलित कर दे यह तो कभी-कभी हम … Continue reading एक विचार यह भी :

श्रीमद्भगवतगीता की वर्त्तमान में प्रासंगिकता :

श्रीमद्भगवतगीता एक सम्पूर्ण ग्रन्थ है जिसमें मानव-जीवन का सारतत्व निहित है ! इसकी प्रासंगिकता वर्त्तमान में भी उतनी ही है जितनी कि महाभारत काल में थी। यह महान ग्रन्थ मनुष्य के समस्त अंतर्द्वंद्वों , मनोभावों और जिज्ञासाओं का सांगोपांग उत्तर देता है। वस्तुत: हमारा शरीर ही धर्मक्षेत्र- कुरुक्षेत्र है। हमारे मन में पलता अनुराग ही … Continue reading श्रीमद्भगवतगीता की वर्त्तमान में प्रासंगिकता :

एक विचार :

रचनाधर्मिता भी एक साधना है। इसमें जितने गहरे उतरते जाइये अपनी अल्पज्ञता का अहसास उतना ही अधिक होने लगता है। मानो सृजन भी प्रेम की पराकाष्ठा का स्वरुप है जिसमें पूर्णता कभी भी प्राप्त नहीं होती !

एक विचार :

बचपन कभी किसी का दामन नहीं छोड़ना चाहता। वह तो निश्छल और निर्मल होता है। उसमें कोई छल-कपट नहीं होता। वह तो किसी स्रोतस्विनी की जलधारा सा प्रवाहमान कोई देवत्व है जिसमें उषा की लालिमा की पवित्रता और निशा की चाँदनी की मनोरमता की समरसता होती है। हमीं उसे नकारने का प्रयास करते रहते हैं। … Continue reading एक विचार :

रामकथा पर एक विचार :

जिसमें अभिमान नहीं है , जिसकी साधना अपेक्षारहित है, जो अपने कर्तव्यमार्ग पर प्रतिफल की गठरी छोड़ने का साहस करता है , जिसकी भक्ति अपने इष्ट में विलीनता का बोध कराने लगती है , वह मनुष्य इसी जीवन में शबरी या हनुमान तुल्य हो सकता है। ऐसे व्यक्ति को अपने इष्ट की कीर्ति में ही … Continue reading रामकथा पर एक विचार :

अद्भुत अंधकार

कभी-कभी लगता है कि प्रकाश अंधकार का पूरक है और कभी लगता है कि अंधकार ही प्रकाश का पूरक है। यह अंधकार ही है जिसकी गहनता में सृजन की ग्रंथियां खुलती है और नवीनता का सृजन करती है। अंधकार मुनिवत् संचेतना का संधान करता जान पड़ता है , मानो मन की गहराइयों में साँस लेती … Continue reading अद्भुत अंधकार

बचपन का अमरत्व

बचपन कभी किसी का दामन नहीं छोड़ना चाहता। वह तो निश्छल और निर्मल होता है। उसमें कोई छल-कपट नहीं होता। वह तो किसी स्रोतस्विनी की जलधारा सा प्रवाहमान कोई देवत्व है जिसमें उषा की लालिमा की पवित्रता और निशा की चाँदनी की मनोरमता की समरसता होती है। हमीं उसे नकारने का प्रयास करते रहते हैं। … Continue reading बचपन का अमरत्व

काव्य

काव्य यदि जीवन की अनुभूतियों का सन्देश दे सके तो अपनी सार्थकता स्वयं ढूँढ लेता है। संसार में ऐसा बहुत कुछ है जो हमारे अंतर्मन को झकझोरता है। यद्यपि बहुधा यह शब्दातीत होता है फिर भी अभिव्यक्ति इसकी संवेदनाओं से साक्षात्कार कराने में अनेक बार सफल भी हो जाती है। दृष्टि जितनी दूर तक जा … Continue reading काव्य

जनआकांक्षाओं की जनक्रांति

देश के सबसे बड़े राज्य के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर जनआकांक्षाओं की जनक्रांति का उद्घोष किया है। इन चुनाव परिणामों को किसी दल विशेष की मात्र जीत के रूप में देखना इसका सतही आंकलन होगा और कदाचित इस जनआंदोलन को नकारने जैसा ही होगा और फिर से अतीत में भी जनता द्वारा की … Continue reading जनआकांक्षाओं की जनक्रांति

Thought

राजनीति प्रतिबद्धताओं का नहीं जागरूक विश्लेषण का विषय है , ऐसी मेरी मान्यता है। जिस देश के नागरिक जागरूक होते हैं उस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। लोकतंत्र में सरकारें जनमानस को प्रतिबिंबित भी करती हैं और उनका प्रतिनिधित्व भी करती हैं , परन्तु इन सरकारों को जबाबदेह जनता ही बना … Continue reading Thought