राजनीति प्रतिबद्धताओं का नहीं जागरूक विश्लेषण का विषय है , ऐसी मेरी मान्यता है। जिस देश के नागरिक जागरूक होते हैं उस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। लोकतंत्र में सरकारें जनमानस को प्रतिबिंबित भी करती हैं और उनका प्रतिनिधित्व भी करती हैं , परन्तु इन सरकारों को जबाबदेह जनता ही बना सकती है।इसलिए जनता का जागरूक होना अति आवश्यक है और जनआकांक्षाओं के अनुरूप कार्य करना जनप्रतिनिधियों का दायित्व ! जनता ही इनके भटकाव को नियंत्रित कर सकती है और जनता ही इन जन-प्रतिनिधियों को उनकी निरंकुशता के लिए दण्डित भी कर सकती है। इसी कारण जनमानस को प्रतिबद्धताओं की बेड़ियों से निकलकर जागरूकता की और बढ़ना होगा क्योंकि केवल यही विकल्प उनकी सार्थकता के लिए एकमात्र कुंजी है।

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