एक नया सूरज

तनिक ध्यान से देखो पथिक ! दूर तक फैले सियहरात के , गहरे अंधकार की परतों में , जमे हुए कुहासे को चीरकर , न जाने कौन-सी जिजीविषा लिए , ठाने हुए किसी चट्टान-सा दृढ , एक अद्भुत और निराला संकल्प , अनेकों झंझावातों से जूझता , प्रतिरोधों की कंटकभरी डगर पर , अपनी पगडंडी … Continue reading एक नया सूरज

ख़्वाब

रात कुछ बैचेन थी और दर्द का सैलाब था , दूर तक फैला हुआ वो मंज़िलों का ख़्वाब था ! ज़िन्दगी अनजान थी और रास्ते थे अजनबी , रेत पर लिखी किसी इबारत का इम्तिहान था। बारिशें थीं तेज और उस नदी में भी उफ़ान था , और नाव खेने के लिए पतवार भी कुछ … Continue reading ख़्वाब

बेचैन चौराहा

विलुब्ध नेत्रों के स्फोटक आवेग से , देखता हूँ रात्रि-तिमिर को झुठलाते , नभ में टँगे हुए तारागणों की , मणियों -सी बिखरती चमक , और चन्द्रमा की निस्तेज -सी धवल चाँदनी को , चारों ओर क्रमबद्ध लैम्पपोस्टों की , दूधिया रोशनी से निस्तेज करते , कोलतार पथों से सुसज्जित , और बड़ी-बड़ी इमारतों के … Continue reading बेचैन चौराहा

अवचेतना में खोया शहर

घुमड़ते अवसाद भरे बादलों के साये में , क्षुब्धता से देखता हूँ यहीं कुछ दूर , गहन अवचेतना में खोया हुआ , एक संवेदनाहीन निष्प्राण सा शहर ! चहारदीवारों में कैद हलचल , अपनी ही धुन गुनगुनाती दीर्घ लहरियाँ , निज स्वार्थ की उत्ताल तरंगें , अपेक्षाओं की गठरी बाँधे , किसी नाट्यशाला की सी … Continue reading अवचेतना में खोया शहर

My Thoughts

कभी-कभी सोचता हूँ धर्म क्या है ? बचपन में पढ़ा था कि Man's calling of one's duty is called Dharma . धर्म की इस व्याख्या को आज भी मेरा मन इतना ही प्रासंगिक मानता है जितना कि बचपन में मानता था। जगह-जगह हो रहे विचारों के द्वंद्व और पनपती घृणा। कभी-कभी सोचता हूँ यह कैसा … Continue reading My Thoughts

My Thoughts

पद्म्श्री श्री गोपाल दास नीरज विगत तीन दशकों में हिंदीजगत के सर्वश्रेष्ठ कवि है। उनकी कविताएँ मैं बचपन से सुनता आया हूँ। मेरे पिताश्री डा० द्वारिका प्रसाद सक्सेना N.R.E.C. Post Graduate College , Khurja में हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे। उन दिनों कालिज में प्रत्येक वर्ष वे कवि-सम्मेलन कराया करते थे। नीरज जी प्रत्येक वर्ष … Continue reading My Thoughts

My Thoughts

परिलब्धियाँ तथा उपलब्धियाँ कभी भी एकाकी नहीं होतीं। उनमें न जाने कितनी निकटस्थ भावनाओं तथा आत्मीय जनों का सहकार तथा सहयोग छिपा होता है। माता-पिता जिस निःस्वार्थ वात्सल्य प्रेम की मधुरतम फुहार से जीवन को अभिसिंचित करते हैं , अर्द्धांगिनी किस तरह गृहस्थ आश्रम को तपोभूमि बना देती है , गुरुजन तथा अग्रजों का आशीष … Continue reading My Thoughts

My Thoughts

उन सपनों का महत्त्व नहीं जो सुप्तावस्था में दिख जाते है ! महत्व तो उन सपनों का है जो जाग्रत अवस्था में देखे और बुने जाते हैं !

My Thoughts

दूध को निरन्तर मथने या बिलोने से उसके सार- तत्व गुण मक्खन के रूप में उत्पन्न हो जाते हैं। 'गो' का अर्थ है अंधकार या अज्ञान और 'पी ' का अर्थ है पीना। अर्थात जो अंधकार रूपी अज्ञान को पी जाय उसे गोपी कहते हैं। माखनचोर भगवान कृष्ण गोपियों के मक्खन को चुराकर मानो समस्त … Continue reading My Thoughts

My Thoughts

विचार शाश्वत होते हैं परंतु उनका उद्गम भाषा से ही संभव है क्योंकि उसी की वल्गाओं को थामकर वे मूर्तरूप ले सकते है। इसी कारण भाषा विचारों का शिल्प है , विचारों की पालनहार जननी है , उनके प्रगटीकरण का माध्यम है। भाषा ने अपने विभिन्न स्वरूपों से विभिन्न संस्कृतियों के विकास में अपनी महत्वपूर्ण … Continue reading My Thoughts