प्रकृति अपने अनुपम सौंदर्य , मनोरम छटा , निश्छलता , निरंतरता , प्रवाह और अप्रतिम उपादानों तथा बिम्बों के माध्यम से मानवता को कितने सशक्त सन्देश देती है। मनुष्य जितना प्रकृति से दूर होता जाता है , उतना ही वह तनाव , कलुषता , वैमनस्य और स्वार्थपरता की दुर्बलताओं से ग्रसित होता जाता है। महान दार्शनिक लाउत्से ने कहा था प्रकृति की सुरम्यता से दूर जाना ही मानवता के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। कभी-कभी सोचता हूँ कि कालचक्र अपने प्रवाह में कैसे वर्त्तमान सभ्यता को उसकी नैसर्गिकता से दूर ले आया !