फिर मैं भी तुम्हें गीत दूंगा

विलुलित नेत्रों से देखता हूँ , कोलतार पथों से सुसज्जित , बहुमंजिली इमारतों में अंगड़ाई लेते , नाना प्रकार की सुख-सुविधाओं के उद्घोषक , आलीशान भवनों की कतारों से , नई सभ्यता की दुंदुभी बजाते , महानगरों और नगरों से दूर , किसी अजन्मे प्रारब्ध की तरह , विपन्नता और अभावों की नियति में , … Continue reading फिर मैं भी तुम्हें गीत दूंगा

एक और बलात्कार

अंधकार ! गहन अंधकार !! मानवता का ! मानवीय मूल्यों का !! किसी तिलिस्मी तिमिर को भी , लज्जित और शर्मसार करती , इंसानियत को चिथड़ा-चिथड़ा करती , पैशाचिक और वीभत्स हुंकार , बीच में गूँजते बेमानी आर्त -वेदना-स्वर ! बहरा -बहरा सब कुछ , विक्षिप्त सी नीरवता में , दरिंदगी का भयावह चक्रवात , … Continue reading एक और बलात्कार

निस्तब्ध घर

ये अजीब सा शांत और बेजान घर , अपनी निस्तब्धता में कुछ कहता है ! अब यहाँ किलकारियाँ नहीं गूँजती , कोई शोरगुल अब यहाँ नहीं होता , ना ही खिलौने बिखरे दिखते हैं , ना ही किताबें फ़र्श पर इधर -उधर दिखती हैं , ना ही किसी कॉपी पर स्याही बिखरती है , ना … Continue reading निस्तब्ध घर

श्यामल झील

नीरव-रात्रि-तिमिर को झुठलाती , ताराकिणी निशा के नीलवर्ण परिधान से , प्रेमातुर चाँद की रिसती धवल चाँदनी से , अपने कँपकँपाते अस्क को स्नान कराती , द्युतिमय रत्नों की अनुपम आभा बिखेरती , चहुँओर पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित , खिलते हुए असंख्य प्रसूनों से सुसज्जित , कामिनी लताओं की मनभावन छटा संजोये , किसी दिव्य-लोक … Continue reading श्यामल झील

अँधेरा बोलता है

दूर तक दिखाई देता है , केवल और केवल अन्धकार , और उसका पहरा देते , नीम, पीपलऔर बरगद के वृक्ष , घनी काँटेदार झाड़ियाँ , और दुरूह पगडंडियाँ , कदाचित परिलक्षित होते हैं पर्याय , उन झोंपड़ियों में बसती जिंदगी के , जिनमें बस कहने को रहते हैं , चेहरे के रक्तहीन विचित्र शून्य … Continue reading अँधेरा बोलता है

हवाओं की परतें

दूर तक फैले अँधेरों की ही नहीं , बहती हवाओं की भी होती हैं परतें , जिन पर हर रोज़ लिखती है ज़िन्दगी , धमनियों में बहते लहू के कम्पन , अन्तस की धड़कन के मध्यम स्वर , आँखों में पलती आशाओं के उन्मीलन , स्वप्न खगों की उड़ान के मधुरिम गान , अपेक्षाओं के … Continue reading हवाओं की परतें

THE CONSTITUTION (ONE HUNDRED AND FIRST AMENDMENT) ACT, 2016

Government of India is keen to introduce Goods and Services tax structure in the country which aims at harmonization of the indirect taxes regime by subsuming a number of taxes levied by the Centre and the States and also to avoid multiple layers of taxation that presently exist in our country . Since Constitutional Amendments … Continue reading THE CONSTITUTION (ONE HUNDRED AND FIRST AMENDMENT) ACT, 2016

बरसता आसमान

रात्रि-तिमिर की नीरवता में , न जाने कौन-सी गहन वेदना के , तीव्र ध्वनि आवर्त सँजोता , दूर क्षितिज के उस छोर पर , बादलों को चीरकर आसमान बरसा ! देखता रहा स्वप्न-खगों पर सवार , अँधियारे को अनमना होकर उड़ान भरते हुए , ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओँ को पीछे छोड़ते हुए , गगनचुम्बी पर्वत श्रृंखलाओं को … Continue reading बरसता आसमान

एक अनजान चेहरा

एक अजनबी अनजान सा चेहरा , उभरता है अँधेरों की धमनियों को सहलाता , तिमिर के तिलिस्म को तोड़ता , जीवन-राग को छेड़ती किसी रागिनी सा , या फिर हवाओं की शीतलता को पिरोता , किसी विमन प्रतीक्षातुर धुँधलके को , द्युतिमय मुख पर सजती , कपोलों की अरुणिमा सी लालिमा से , और मृगनयनों … Continue reading एक अनजान चेहरा