एक अहसास 

वो साथ रहता था धड़कनों की तरह , और दूर जाता था ख़्वाबों की तरह। उसकी खुशबू थी खुशरंग गुलाबों की तरह , और महकता था वासंती हवाओं की तरह। उसका अक़्स टकराता था लहरों की तरह , और खो जाता था आँखों में सपनों की तरह। उसकी आँखें बोलती थीं समंदर की तरह , … Continue reading एक अहसास 

ये झकझोरती बारिश 

ये बारिश हमेशा रूमानी नहीं होती , हमेशा इसमें सुकुमारता नहीं होती।। देखता हूँ छतों से रिसते पानी को , सीलन की दुर्गन्ध और बेबसी को। सीली हुई माचिस की तीलियों को , हथेली में रगड़ने की कोशिशों को।। देखता हूँ विकृत से जल-भराव को , पलायन करती बेबस जिन्दगी को। दो जून की रोटी … Continue reading ये झकझोरती बारिश 

बेचैन रात

 रात न जाने क्यों हर रोज करवटें बदलती है , ये कौन-से ख़्वाब हैं जो इसे सोने नहीं देते । कौन-सी प्रवंचनाएं पलती हैं इसकी पलकों में , बेचैनियों के कौन-से समंदर इसे सोने नहीं देते। जाने किसको वीराने में देखती है यह अपलक , आरजुओं के कौन-से धुंधलके इसे सोने नही देते। जब दर्द … Continue reading बेचैन रात

जल-प्रपात

पथिक ! तनिक ग़ौर से देखो , उस प्रवाहमान जल-प्रपात को , जिसने न जाने कितने संकल्पों से , न जाने कितनी जिजीविषा से , न जाने कितनी साधना से , और कालजयी अथक परिश्रम से , अभेद्य चट्टानों को चीर कर , बनाया है अपना मनोहारी उद् गम ! पथिक ! तुम यह भी … Continue reading जल-प्रपात

दरवाजे

पथिक ! किसकी बाट जोहते हो ? अपने पुराने निरर्थक से मकान के , निष्प्राण होते जाते दरवाजों को खोलकर , किसी ढलती हुई साँझ की तरह ! क्यों निरंतर याद करते हो , उन लौट कर न अाने वाले पलों को , जब कोई देता था दस्तक , तुम्हारे बंद दरवाजों को , तब … Continue reading दरवाजे

किनारे और जलधारा

पथिक ! कैसा अद्भुत है जीवन , किनारे देते हैं अस्तित्व जलधारा को , इन्हीं की गोद में खेलती , कूदती , मचलती , और इन्हीं से पोषित और पल्लवित होकर , पाती है जलधारा अपनी पहचान , अपने गन्तव्य की अपरिचित दिशा , अपनी जिजीविषा और संकल्प , अपना निरन्तर मनोरम प्रवाह ! पथिक … Continue reading किनारे और जलधारा

दु:स्वप्न

वो आज भी भेदता है मेरे दामन को , किसी तंज़ -भरे नुकीले नेज़े की तरह ! और कसकता है दिल की गहराइयों में , चुभ कर टूटे हुए किसी काँटे की तरह !! वो धड़कता है साँसों में बहुत हौले से , दूर से आती बोझिल हवाओं की तरह ! और दहकता है बेज़ार … Continue reading दु:स्वप्न

भोर की दस्तक

अपलक नेत्रों से देखता हूँ , सूर्य के तेजोमय रक्तवर्ण ललाट में , स्वर्णिम परिधान में सुसज्जित , किरणीली आभा से सुशोभित घूँघट में , लजाती अरुणिमा का विलक्षण समर्पण , और उनकी प्रेममय आभा से प्रस्फुटित , दिग-दिगन्त में अप्रतिम कान्ति बिखेरता , यह मनोहारी देदीप्यमान आलोक ! बिहँसते पक्षियों का कलरव , जलधाराओं … Continue reading भोर की दस्तक