रात न जाने क्यों हर रोज करवटें बदलती है ,
ये कौन-से ख़्वाब हैं जो इसे सोने नहीं देते ।
कौन-सी प्रवंचनाएं पलती हैं इसकी पलकों में ,
बेचैनियों के कौन-से समंदर इसे सोने नहीं देते।
जाने किसको वीराने में देखती है यह अपलक ,
आरजुओं के कौन-से धुंधलके इसे सोने नही देते।
जब दर्द भी गहराइयों में सो जाता है बेसुध होकर ,
कौन-सी अंधी चाहत के बुलबुले इसे सोने नहीं देते।