हमें ये इल्म है हमने ढेरों नसीहतें दी है ,
ख़ुद अमल करने का हौसला नहीं होता।

हर रोज़  ग़ैरों  को आइना दिखाते हैं हम ,
ख़ुद से बात करने का हौसला नहीं होता।

बेपनाह मंज़िलों की ख़्वाहिश लिए हैं हम ,
पर ख़ुद पे ऐतबार का हौसला नहीं होता !

वो बेपर्दा हो इसी आरज़ू में मशग़ूल हैं हम ,
इसका सिला  झेलने का हौसला नहीं होता।

अपनी फ़ितरत का यूँ ही मज़ा लेते हैं हम ,
ये  ग़ुनाह  क़ुबूलने का  हौसला नहीं होता !

One thought on “बेख़ुदी :

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