बरसों बाद आज वो फिर मेरे घर आया था ,
मुझको मेरी भूली हुई पहचान देने आया था !
जो कभी हर तरह महफूज़ था मेरे साये में ,
मुझसे मेरे मकान का पता पूछके आया था !
यूँ बेवजह आने का तो कोई सबब नहीं होता ,
वो अपनी फिर नई फरियाद लेके आया था !
शायद उसे अभी भी यक़ीन था मेरे रसूख़ पर ,
तभी तो एक बार फिर उसे तौलने आया था !
वो मुझसे मेरा हाल पूछेगा ये उम्मीद तो न थी ,
बारहा अपने मुश्किलात मुझे बताने आया था !
बरसों बाद आज वो फिर मेरे घर आया था ,
मुझको मेरी भूली हुई पहचान देने आया था !