कोलतार पथ का दामन थामे ,
दिनभर राहगीरों की पदचाप का ,
उनकी दौड़ती हुई ज़िन्दगी का ,
उनके बनते-बिगड़ते सपनों का ,
किसी जाने-बूझे गन्तव्य का ,
पर्याय बनता है ये फुटपाथ !
एकदम जड़वत और शान्त ,
फिर भी करता है प्रतिध्वनित ,
न जाने कितनी संवेदनाओं की ,
न जाने कितनी सुकुमारताओं की ,
न जाने कितने प्रहसनों की ,
न जाने कितने खग-स्वप्नों की ,
और आशा-निराशा के हिंडोलों की ,
स्वर लहरियों के ध्वनि-आवर्त !

दिवस का अवसान होते ही ,
अपने पाषाणी वक्षस्थल पर ,
मृदुलता के माधुर्य की चादर बिछाकर ,
अनायास ही बन जाता है ये फुटपाथ ,
भागती-दौड़ती बेसहारा ज़िन्दगी का ,
धुंधलके में डूबे हुए सपनों का ,
अभिशप्त सी बेचैनियों का ,
कसकती हुई बेबसी का ,
मलिन सी आर्त -वेदनाओं का ,
मसली गयी लज्जाशीलता का ,
सिसकते-कराहते बचपन का ,
मृत्यु को आतुर वृद्धावस्था का ,
ठुकराई गयी बेबस साँसों का ,
नितांत अकेला आश्रय-दाता !

मानो रोज़ करता हो चुभते प्रश्न ,
प्रगति और विकास की दुंदुंभी बजाते ,
नई सभ्यता के स्वयं को प्रणेता कहते ,
निज परिधि में समृद्धि का पोषण करते ,
न जाने कितने नशे में मदहोश ,
समाज और राष्ट्र के ठेकेदारों से !
पर ये प्रश्न हैं यूँ ही अनुत्तरित ,
क्योंकि बेबसी , बेकसी और दुर्भाग्य ,
रहते हैं अजन्मे अभिशाप की तरह !
इनसे लड़ सकती है तो केवल जिजीविषा ,
मन की दृढ़ता और आत्मविश्वास ,
इसलिए इस फुटपाथ को ही तपना होगा ,
अपना सूरज ख़ुद उगाना होगा ,
अपना सवेरा ख़ुद ही लाना होगा ! !

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