यह संसार बड़ा विचित्र है। अपना दुःख बाँटने जो निकलता है उसे बहुधा निराशा ही मिलती है क्योंकि जो दिखता है बहुधा वह प्रवंचना ही होती है। मनुष्य अपने दुःखों पर अपनी संकल्पशक्ति तथा जिजीविषा से ही विजय प्राप्त कर पाता है। इसलिए अपने दुःखों को यथासम्भव अपने अंतस में सँजोकर रखना भी एक जीवन शैली है ताकि हमें हमारे अपने दिखने वालों से निराशा की स्थिति न मिले और हम भी प्रवंचनाओं में जीते रहें। सत्य कभी-कभी बहुत ही कड़वा होता है , विशेषकर वो जो हमें हमारे अपनों से मिलता है।

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