रात कुछ बैचेन थी और दर्द का सैलाब था ,
दूर तक फैला हुआ वो मंज़िलों का ख़्वाब था !
ज़िन्दगी अनजान थी और रास्ते थे अजनबी ,
रेत पर लिखी किसी इबारत का इम्तिहान था।

बारिशें थीं तेज और उस नदी में भी उफ़ान था ,
और नाव खेने के लिए पतवार भी कुछ दूर था !
हवाएं भी थीं कुछ सर्द और हर तरफ जंजाल था ,
ज़िन्दगी को ढूंढता ये एक हसरतों का दाँव था।

धुँधलके थे पास और कुछ दूर सियहरात थी ,
कुछ कर गुजरने का ये अजीब इत्तिफ़ाक था !
फ़ितरतों के जाल थे और साथ थीं रुसवाइयाँ ,
दिल में लेकिन चाहतों का एक नया उन्मान था।

अब सोचता हूँ ज़िन्दगी की है अजीब दास्तान ,
मरघटों में भी ढूँढती है मंज़िलों के ये निशान ।
आस की चादर में जाने कौन-सी चाहत लिए ,
कैसे हरदम बुनती है ये चंद ख़्वाबों के मकान।

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