नीरव-रात्रि-तिमिर को झुठलाती ,
ताराकिणी निशा के नीलवर्ण परिधान से ,
प्रेमातुर चाँद की रिसती धवल चाँदनी से ,
अपने कँपकँपाते अस्क को स्नान कराती ,
द्युतिमय रत्नों की अनुपम आभा बिखेरती ,
चहुँओर पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित ,
खिलते हुए असंख्य प्रसूनों से सुसज्जित ,
कामिनी लताओं की मनभावन छटा संजोये ,
किसी दिव्य-लोक की अप्सरा सी ,
बिहँसती , इठलाती , इतराती ,
अंतस की वीणा को झंकृत करती ,
कितनी अप्रतिम है यह श्यामल झील !
इसके निःशब्द स्वरों की सुर-लहरियाँ भी ,
संजोये हैं जल-कम्पनों की थरथराहट में ,
कितना तेजोमयी किन्तु निश्छल आवेग !
जिसका उत्कर्षण है इसकी अमिट जिजीविषा ,
जो देती है इसको किसी नवयौवना का ,
मनमोहक अनुपम चिर-सौंदर्य !
अद्भुत आभामयी द्युतिमान कान्ति युक्त ,
मुनिवत शांत और प्रखर आकर्षण !
नहीं करती यह प्रश्न अपनी परिधि पर ,
नहीं कोसती यह नियति को अपने बंधन पर ,
जानती है बंधन-युक्त उन्मुक्तता ही है ,
जीवन और जीवन्तता का चिर-आनन्द !