आज वो फिर किसी फुटपाथ पे सोया है ,
सबके नसीब में घर की छत नहीं होती !

वो अपने घुटनों को मोड़ सिकुड़कर सोया है ,
सबके नसीब में ओढ़ने को चादर नहीं होती !

वो तो रातभर तन्हाई में करवट बदलता है ,
सबके नसीब में काँधे की सिहरन नहीं होती !

उसको बदनसीब कहें या कोई और नाम दें ,
सबके नसीब में मय भी मयस्सर नहीं होती !

वो बिना किसी परवाह के बेख़ौफ़ सोया है ,
सबके नसीब में लुटने को दौलत नहीं होती !

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