शब्द की शाश्वतता विचारों की शाश्वतता का बोध कराती है।  अनंत में तैरते यह विचार चिंतन का सम्बल पाकर अनायास ही निकटस्थ हो जाते हैं और अन्तस् में उद्वेल्लित होने लगते हैं , जहाँ प्रगटीकरण के लिए बेचैन ये विचार भाषा का सम्पुट पाकर अभिव्यक्त हो जाते हैं।  अभिव्यक्ति की शैली का अन्तर इन विचारों की नवीनता का भले  ही अहसास कराये परंतु सत्य तो यह है कि  ये कालजयी होते हैं और इनका वास्तविक उद्गम भी कल्पनातीत है।

मेरे अन्तस् में पलते ऐसे ही कुछ विचारों का मूर्त-रूप प्रस्तुत है – Opinion Blog