ये जीवन लगता जैसे हो लहरों का प्रत्यावर्तन ,
लहरों का उत्कर्षण ज्यों सुख-दुःख का आवर्तन ,
तट का संश्लेषण करता मर्यादाओं का निर्धारण ,
स्थित-प्रज्ञ सिंधु करता प्रखरता से ये उद्बोधन !
नदिया कहती प्रवाह ही है जीवन का चिर-तत्व ,
जल-धारा का आवेग मानो जिजीविषा का सत्व ,
पाषाणी उद्गम से निकला निश्छल जल-प्रपात ,
मानो नित करता उद्घोषणा संघर्ष ही अमरत्व !
मृदुल-मालती-कुंज कहता मैं जीवन की सरसता ,
कलियों का अनिंद्य सौंदर्य ज्यों पसरी हो मधुरता ,
मधु-संसृति उकेर जगत में चहुँओर सुकुमारता ,
ज्यों कहती हो नव-सृजन ही जीवन की निर्मलता !
पाषाणी चट्टानें प्रखरता से देतीं दृढ़ता का सन्देश ,
गगनचुम्बी चोटियाँ सिखातीं उन्नतता का परिवेश ,
जर्जर होने पर भी उपयोगिता त्याग न करते वृक्ष ,
परमार्थ की सार्थकता का देते अनुपमेय उपदेश !
अरुणिमा नितदिन कहती नवल-आशाएं ही जीवन ,
रूप-चन्द्रिका कहती शीतलता ही अनुपम आभूषण ,
वासंती सुवास हवाओं में भरके मद-विह्वल स्पंदन ,
ज्यों कहती हो मृदुलता ही सबसे मधुरिम आकर्षण !