जितने दिन उनके ग़म भुलाने में लगे ,
उतने बरस ये वक़्त गुज़ारने में लगे !
आँधियों का क्या वो आती-जाती रहीं ,
ज़माने खुशियों के ख़्वाब आने में लगे !
जिन गुलों को खिलाया लहू से अपने ,
चन्द लम्हे उनकी ख़ाक उड़ाने में लगे !
याद आयी जब नौबहार की बादे-सबा ,
तब लब-ए-ख़ामोश मुस्कराने में लगे !
बेगानाए-एहसासे-जमाल बेख़बर रहा ,
कितने दिलनशीं उसकी चाहत में लगे !
वक़्त बदला या उसकी रवायतें बदलीं ,
हमनशीं ही दिल में नेज़े चुभाने में लगे !