वक़्त किसी पेड़ की शाख पर ,
फड़फड़ाता है आर्त-स्वर में ,
किसी चोट खाये पंछी की तरह ,
समेटता है कुछ बासी से लम्हे ,
कुछ अनकही अनसुनी बातें ,
बुदबुदाता है हौले से ,
नीरवता के आँगन में तैरती ,
कुछ सिमटी हुई ख़ामोशियों से ,
चाहता है कुछ बताना ,
अपनी ही धुन में डूबे ,
मदमत्त किन्तु बेख़बर वर्तमान को ,
जो नहीं सीखता अतीत से ,
उसकी परिणति है केवल मिटना ,
वैसे भी इतिहास के पन्नों पर ,
दर्ज़ होती हैं गाथाएं विजेताओं की ,
इतिहास किसी साहूकार जैसा ,
तरह-तरह की मिलावट के साथ ,
करता है मूल्यांकन पराजय का ,
इसीलिए वक़्त हिलाता है डालियों को ,
अपनी मन्द किन्तु सार्थक ध्वनि से ,
चाहता है देना सन्देश वर्तमान को ,
भविष्य को करना है सुरक्षित ,
तो सफ़े पलटो अतीत के ,
समझो इनमें लिखी इबारत को ,
और सँवारो अपने परिवेश को !!

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