वीरान सी अनगिनत गलियों में ,
किसी आपदा की बढ़ती दस्तक से ,
अवचेतना में डूबे बन्द दरवाज़े ,
थरथराते हैं भयाक्रांत होकर ,
घबराई हुई बेचैन खिड़कियाँ ,
कँपकँपाती हैं निष्प्राण होकर !
हवाएं भी हैं स्तब्ध सी ,
दूर तक पसरे वेदना अतल में ,
आकाश की नीलिमा भी डूबी ,
अभेद्य से गहरे अवसाद में !
चहुँओर पसार रही है पाँव ,
चिन्ता की अमिट लकीरें ,
जकड़ रही मानवता को ,
काल की विकराल जंजीरें !
धर्म की दुहाई देकर विधर्मियों ने ,
अपने नापाक इरादों के वशीभूत ,
इंसानियत का क़त्ल करने को ,
अपनी क्रूरता की गाथा लिखने को ,
रच दिया है एक भयंकर षड्यन्त्र ,
जिससे आहत है समस्त तन्त्र !
पर अभी इरादों की चमक बाक़ी है ,
पराजय न मानने की ललक बाक़ी है ,
कुछ कर गुज़रने की आस बुझी नहीं ,
षड्यन्त्र कुचलने का दम बाक़ी है !
जब जन-जन हो गया है एकजुट ,
पूर्ण ध्येयनिष्ठ और कर्तव्यनिष्ठ ,
मिट जाएंगे सभी षड्यन्त्रकारी ,
दूर हो जाएगी आपदा सारी ,
इंसानियत प्रशस्त अवश्य होगी !
मानवता विजयी अवश्य होगी !!