आँधियाँ अक्सर मदहोश होती हैं ,
उजाड़ देती हैं अनगिनत गुलशन ,
तोड़ देती हैं अनगिनत सपने ,
मिटा जाती हैं सृजन की लकीरें ,
बहा ले जाती हैं भविष्य की आशाएं ,
नहीं देखती झूठ और फ़रेब ,
नहीं जानतीं सत्य की सीमाएं ,
अनजान रहती हैं अंधी स्वार्थपरता से ,
बेख़बर रहती हैं बेलगाम आकांक्षाओं से ,
वितृष्णा की अदृश्य चादर लपेटे ,
अपनी उच्छृंखल उन्मुक्तता में ,
यूँ ही तीव्रता से थपेड़े दे जाती हैं ,
अपने वर्तमान को प्रबल प्रवाह देतीं ,
ये आँधियाँ कभी-कभी इतिहास के पन्नों पर ,
अपनी अकीर्ति की गाथा भी लिख जाती हैं ,
आँधियाँ अक्सर चेतना-शून्य होती हैं !