बादलों का क्या ये तो  बे-मौसम भी चले आते हैं ,
कभी बरसते हैं कभी बरसने का झाँसा दे जाते हैं !

इन्हें यक़ीं है कोई इनसे ज़िरह कभी नहीं करेगा ,
इसीलिए आँधियों के साये में बरबादी दे जाते हैं !

अपनी शौक़े-फ़ितरत में ये बेख़ौफ घूमते रहते हैं ,
अपने ज़ुल्मों-सितम से ये बेपनाह दर्द दे जाते हैं !

इनकी तुनक-मिज़ाजी की बातें भला किससे करें ,
अक्सर किसी बेवफ़ा की तरह ये ज़ख़्म दे जाते हैं!

कड़ी मेहनतक़शी सजाती है जिन आँखों में सपने ,
अपनी आवारगी से उन्हें लहू के अश्क दे जाते हैं !

बादलों का क्या ये तो  बे-मौसम भी चले आते हैं ,
कभी बरसते हैं कभी बरसने का झाँसा दे जाते हैं !

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