यूँ ही तन्हाई में हम दिल पे सितम करते हैं ,
तुझको लिखते हैं मगर उसको मिटा देते हैं !
ये तो सच है कि ज़िन्दगी दूर चली आयी हैं ,
फिर भी माज़ी को हम अब भी सदा देते हैं !
वो हवाएं तो अब गुलशन में नहीं आती हैं ,
फिर भी जज़्बातों को हम यूँ ही हवा देते हैं !
वक़्त तो यकीं है परिंदों की तरह उड़ता है ,
फिर भी हसरतों को हम पंख लगा देते हैं !
ये तन्हाई तो सरे-शाम यूँ ही चली आती है ,
फिर भी बेबसी को हम फ़साने सुना देते हैं !
यूँ ही तन्हाई में हम दिल पे सितम करते हैं ,
तुझको लिखते हैं मगर उसको मिटा देते हैं !