इतिहास भी विस्मयकारी होता ,
कभी भविष्य की नहीं सोचता ,
न कभी वर्तमान को विचारता ,
बस मूल्यांकन अतीत का करता !
गर्भ में इसके छिपे कालखण्ड ,
जाने कितने प्रयाणों के मेरुदण्ड ,
प्रणेताओं की कालजयी गाथायें ,
उत्थान और पराभव की कथायें !
अंकित है इसके अमिट पृष्ठों पर ,
वैश्विक संस्कृतियाँ और विरासतें ,
न जाने कितने युगों के शासन-तंत्र ,
विकासोन्मुख अगणित व्यवस्थायें !
फिर भी इतिहास एकपक्षीय नहीं ,
समेटे है काल के प्रलयंकारी संहार ,
अनेकानेक षड्यंत्र और अनाचार ,
जाने कितने कुचक्र और दुराचार !
पर वर्तमान का भी है हठी चलन ,
सजाता है केवल भविष्य के स्वप्न ,
नहीं जानना चाहता यह अतीत को ,
उपेक्षा से देखता है यह इतिहास को !
सोचता है उद्विग्न मन विवशता में,
काश अतीत इसे कुछ सिखा पाता ,
या इतिहास अपनी प्रकृति बदलके ,
वर्तमान का मूल्यांकन कर पाता !!