बेख़ौफ़ हवायें ये ज़ुल्म हर रोज़ किया करती हैं ,
मेरे दरवाज़े को अक्सर दस्तक दिया करती हैं !
सरसराहट सी होती है इन खिड़कियों में अक्सर ,
जाने कौनसी आरज़ू लिए नेज़े सी चुभा जाती हैं !
सियहरात के अँधेरों में जब बेचैनियाँ मचलती हैं ,
ये अपनी बेबाकियों से दुश्वारियाँ किया करती हैं !
नहीं मालूम मेरे माज़ी को क्या बयाँ करना है इन्हें ,
जो रोज़ मेरी दहलीज़ को सदायें दिया करती हैं !
न जाने कितने लम्हों को अपने नज़दीक बुलाकर ,
ये दिल के सफ़ों पे कोई इबारत लिखा करती हैं !
बेख़ौफ़ हवायें ये ज़ुल्म हर रोज़ किया करती हैं ,
मेरे दरवाज़े को अक्सर दस्तक दिया करती हैं !