कभी पगडंडी भी अक्सर हालेदिल पूछा करती थी ,
अब तो ये सड़क बेरुख़ी से नज़र चुराती रहती है !
कभी वो कुआँ रोज़ पानी के लिए बुलावा देता था ,
अब तो पानी की ख़ातिर ज़िद्दोजहद लगी रहती है !
कभी बावड़ी और तालाबों का ख़ुशनुमा मंज़र था ,
अब पथरीली इमारतों में साँसों की घुटन रहती है !
कभी बरसाती फुहारों में झूलों की मस्ती रहती थी ,
अब बारिश में भीगने को ज़िंदगी तरसती रहती है !
कभी बासंती हवाओं के झोंके मनुहार किया करते थे ,
अब चाँदनी भी बंद कमरों को दस्तक देती रहती है !
कभी घूँघट से चाँद दिलकश सदायें दिया करता था ,
अब तो बेनियाज़ी की बेबाक नुमाइश लगी रहती है !
कभी उस मुफ़लिसी से भी ख़ुद्दारी का गुमाँ होता था ,
अब तो शानो-शौक़त में भी रुसवाई छिपी रहती है !
कभी पगडंडी भी अक्सर हालेदिल पूछा करती थी ,
अब तो ये सड़क बेरुख़ी से नज़र चुराती रहती है !