ये बादल तो आवारा है ये भला क्या जाने ,
उस बदनसीब की छत से पानी टपकता है !
ये आँधियाँ तो बेख़ौफ हैं ये भला क्या जानें ,
उस झोंपड़ी का छप्पर अब भी कंपकपाता है !
ये आशियाँ तो मदहोश है ये भला क्या जाने ,
वहाँ दो जून की रोटी को बचपन मचलता है !
ये इमारतें तो मग़रूर हैं ये भला क्या जानें ,
वो बेज़ार फुटपाथ किसी छत को तरसता है !
ये नुमाइशें तो तिलिस्मी हैं ये भला क्या जानें ,
वहाँ बेनूर यौवन तन ढकने को कसमसाता है !