अब वो माज़ी की सदाओं में नहीं जीता ,
उसने रुतों की तरह जीना सीख लिया है !
अब वो उन लाचारियों में नहीं रहता ,
उसने हालात से लड़ना सीख लिया है !
घने तिमिर के तिलिस्म से निकलकर ,
उसने उजालों में हँसना सीख लिया है !
माथे पे मढ़ी मलिन स्याही को मिटाकर ,
उसने नई इबारत लिखना सीख लिया है !
नियति की बेबसी के तरानों को भुलाकर ,
ज़िंदगी की सरगम पे गाना सीख लिया है !
अब वो उस बदनाम बस्ती में नहीं रहता ,
उसने नया आशियाँ बनाना सीख लिया है !