हे चहुँओर पसरी मदमत्त चाँदनी !
इस कदर मत इठलाओ ,
अरी लरजती लहरो !
इतनी गर्जना मत करो ,
ओ कल-कल करती नदियो !
अपने छपाकों को शांत कर लो ,
हे निशा से अठखेलियाँ करते राकापति !
अपनी इस प्रणय-लीला को रोक लो ,
अरे अँधेरों को लजाते जुगनुओ !
कुछ देर कहीं और बसेरा कर लो ,
ओ नीरवता की लहरियों के कम्पनो !
कुछ देर अपने ध्वनि-आवर्त रोक लो ,
हे स्वाति नक्षत्र की आस लगाए पपीहे !
अपनी पलकें पलभर को झुका लो ,
देखो सदियों बाद वो आसमान सोया है !
वो निराश्रित सा आसमान सोया है !!