मदहोश हवाओं ने जो उसके दर पर दस्तक दी ,
वो कतरों में जी रहा था उसने ख़ुदकुशी कर ली !
उनको कोई इल्म न था अपनी महसूफ़ियत में ,
उसकी साँसें बेज़ार थीं मुफ़लिसी की गर्दिश में !
वो बेइंतहा मशग़ूल थीं अपनी शौके-फ़ितरत में ,
उसकी ज़िन्दगी खौफ़जदा थी फ़ना के मंज़र में !
हसीन नेज़े से वो तो सितम ढाकर निकल गयीं ,
एक बेज़ार सी ज़िन्दगी को ज़मीदोज़ कर गयीं।
वहाँ हालत ने भी नसीहतों की चूनर लपेट ली,
वक़्त ने फिर मजबूरी की नई चादर ओढ़ ली !
मदहोश हवाओं ने जो उसके दर पर दस्तक दी ,
वो कतरों में जी रहा था उसने ख़ुदकुशी कर ली !