पथिक ! तनिक ध्यान से देखो ,
तुम्हारे अन्तस में पलते हैं ,
अगणित आशा-पुंज ,
उनकी तान-धुन पर तैरती ,
ज्योतिर्मय तीव्र लहरियाँ ,
उनसे संगत करते ,
जीवंतता के सशक्त स्वर ,
अनन्त को मुट्ठी में भर लेने का ,
अनुपमेय निश्छल आवेग ,
खग-पंखों पर उड़ान भरती ,
न जाने कितनी उम्मीदें ,
आकाश को नाप लेने का ,
अद्भुत अदम्य साहस ,
पाषाणी चट्टानों को चीरकर ,
गन्तव्य चुनने की ललक ,
निरन्तर जूझते रहने की ,
अपराजेय जिजीविषा ,
उत्कर्षण की संजीवनी से सराबोर ,
कालजयी दृढ़ संकल्प !
इसीलिए धमनियों में लहू के साथ तैरते ,
इस ध्रुव-सत्य को तुम जान लो ,
तुम्हारा प्रारब्ध केवल मिट्टी नहीं है ,
क्योंकि केवल देह नहीं हो तुम !
सचमुच केवल देह नहीं हो तुम !!