मेरा दरवाज़ा खुला है ,
कभी यूँ ही आओ तुम !
सुवासित वासन्ती हवाओं की तरह ,
गुलशन में महकते गुलों की तरह ,
उत्ताल-तरंगों की तान-धुन की तरह ,
वृष्टि को मचलते मेघों की तरह ,
मदमत्त रिमझिम बारिश की तरह ,
किसी किरणीली भोर की तरह ,
दीवार से आँगन में उतरती धूप की तरह ,
सजी-सँवरी श्यामल साँझ की तरह ,
शीतलता बिखेरती धवल चाँदनी की तरह ,
प्रेमातुर ताराकिणी निशा की तरह ,
छत पर आते परिंदों की तरह ,
या फिर सिलवटें खोलती ,
माज़ी की लकीरों की तरह !
मुझसे बिना कुछ पूछे ,
मुझे बिना कुछ बताये ,
यह दरवाज़ा खुला है ,
यूँ ही कभी आओ तुम !

One thought on “कभी आओ तुम !

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