रचनाधर्मिता भी एक साधना है। इसमें जितने गहरे उतरते जाइये अपनी अल्पज्ञता का अहसास उतना ही अधिक होने लगता है। मानो सृजन भी प्रेम की पराकाष्ठा का स्वरुप है जिसमें पूर्णता कभी भी प्राप्त नहीं होती !
रचनाधर्मिता भी एक साधना है। इसमें जितने गहरे उतरते जाइये अपनी अल्पज्ञता का अहसास उतना ही अधिक होने लगता है। मानो सृजन भी प्रेम की पराकाष्ठा का स्वरुप है जिसमें पूर्णता कभी भी प्राप्त नहीं होती !