कभी-कभी सोचता हूँ कि संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जो कुछ न कुछ अभिव्यक्त न करता हो। बस ये तो हम पर ही निर्भर करता है कि हम इस अभिव्यक्ति को कब और कैसे जान पाते हैं,उससे कैसे सहकार करते हैं। यह अभिव्यक्ति कब हमारे अंतस को आंदोलित कर दे यह तो कभी-कभी हम स्वयं भी नहीं जानते। लेकिन यह सत्य है कि इसी से हमारी सृजन की ग्रंथियां खुलती हैं।