जाने किसके शाप से शापित है ये जनजीवन ,
कुहासे में लुप्त हुए हैं कुटुम्ब और कुटुम्बीजन ,
अपने-अपने सुख हैं सबके अपने-अपने ग़म ,
देखता हूँ हर तरफ ये जीवन का एकाकीपन !
अपनी परिधि में होते मुदित यहाँ सभी के मन ,
ट्विटर , फेसबुक , वाट्सएप बना नया जीवन ,
रिश्ते-नाते कौन निभाए किसको इसका इल्म ,
लाइक्स , कमेंट्स ले जाते जीवन के पलछिन !
जीवन इतना व्यस्त हुआ किसको किसका होश ,
तरुणाई को तनावों में घेर समय हुआ मदहोश ,
उन्मुक्तता ने सर्वत्र फैलाई चकाचौंध की काया ,
सम्बन्धों पर ब्रेक-अप ने फैलाई अपनी छाया !
बन्द खिड़कियाँ देख न पातीं आभामयी अरुणिमा ,
द्युतिमान इमारतें देख न पातीं निशा की मधुरिमा ,
कल-कल करती नदियों का संगीत कहीं है खोया ,
कलरव करते पक्षियों का मनुहार कहीं हैं सोया !
जीवन ना जाने किन लहरों में कहाँ चला आया ,
अपनेपन को लील भँवर ने कैसा जाल बिछाया ,
सब कुछ मानो क़ैद हो गया अपने ही जालों में ,
बेबस मन छटपटा रहा अपने ही झंझावातों में !!