जिसमें अभिमान नहीं है , जिसकी साधना अपेक्षारहित है, जो अपने कर्तव्यमार्ग पर प्रतिफल की गठरी छोड़ने का साहस करता है , जिसकी भक्ति अपने इष्ट में विलीनता का बोध कराने लगती है , वह मनुष्य इसी जीवन में शबरी या हनुमान तुल्य हो सकता है। ऐसे व्यक्ति को अपने इष्ट की कीर्ति में ही अपना यश अनुभव होने लगता है और उसकी कीर्ति स्वतः ही सर्वव्यापी हो जाती है। रामकथा की प्रासंगिकता इसी कारण आज भी उतनी ही है जितनी त्रेता युग में थी ! इस कथा में मनुज रूप में ही व्यक्तित्व की विलक्षणता ,कर्तव्य की पराकाष्ठा और अपेक्षारहित भक्ति के उदात्त स्वरूप का सहज ही बोध होता है। यह कथा जनमानस की कथा है , जन-जन की कथा है, इसीकारण यह कालजयी गाथा है।