जो कुछ वो कह रहा था बड़े एतमाद से ,
उसको यक़ीन था वो झूठ बोल रहा था !
पर सामने चाटुकारों का बड़ा हुजूम था ,
जो बस उसके जयघोष में मशग़ूल था !

लोग थे मदहोश उनमें अज़ीब जोश था ,
कुछ कर गुजरने का बेपनाह जुनून था !
जो थे गुनहगार वही थे मुंसिफ बने हुए ,
सियासत का भी ये अज़ीब मन्ज़र था !

ग़ैरों को कोसने की थी बस होड़ मची हुई,
ख़ुद में झाँकने का वहाँ किसको होश था !
अपने ही दाँव-पेच में वो थे सब लगे हुए ,
अपनी बिसात का ही बस उन्हें इल्म था !

जिसके लिए हो रही थीं ये सारी कवायतें ,
उसके लिए वहाँ कोई भी फ़िक्रमंद न था !
कहीं दूर सुबकती थी वो पेड़ों की छाँव में ,
जुम्हूऱियत का देखो ये अज़ीब खेल था !
सचमुच जुम्हूऱियत का अज़ीब खेल था !!

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s