देखे अनेक गठबंधन जातीय समीकरणों को पुष्ट करने को ,
और निजी स्वार्थवश बस येन-केन-प्रकारेण सत्ता पाने को ,
राजनितिक दल बने हैं स्वयंभू ,जाति और धर्म के ठेकेदार ,
यहाँ किसे है भोली जनता की डूबी आकांक्षाओं की दरकार !
ये दंगल है बस किसी दल का टिकट पाने की जुगत करने का ,
जन-सेवा के नाटक में सफल होने पर अपनी झोली भरने का ,
जन-तंत्र बना है राज-तंत्र और जन-सेवा बनी जीविकोपार्जन ,
ठेकेदारों की बस्ती में ठगी जा रही भोली जनता हर पलछिन !
सत्य बना है मूक-वधिर और ये प्रपंच सिरमौर इस बस्ती का ,
कर्त्तव्य और निष्ठा छोड़ आडम्बर बना सर्वस्व इस बस्ती का ,
तरह-तरह की कुश्ती लड़ते ये दलों के पहलवान इस बस्ती में ,
और बेबस जनता छली जा रही उन तमाशबीनों की टोली में !
नित नए -नए नारे बुनते हैं कुशल रणनीतिकार इस बस्ती में ,
नए-नए परिधान सजाते इन अभिनेताओं को निराले चोलों में ,
रोल वही , पटकथा वही लेकिन आकर्षण है इनके अभिनय में ,
इनका जय-जयकार बजाता राज-तंत्र की दुंदुभी इस बस्ती में !
जाने कब जागेगी जनता कब होगा उसे अपने हित का ध्यान ,
कब निकलेगी इस चंगुल से लेकर अपने हाथों में तीर-कमान ,
जाति , धर्म और वर्गों की जंजीरों को कब काटेगी यह नादान ,
अभावों और विवशताओं को कब मिलेगा वांछित स्वाभिमान !