पथिक ! किसकी बाट जोहते हो ?
अपने पुराने निरर्थक से मकान के ,
निष्प्राण होते जाते दरवाजों को खोलकर ,
किसी ढलती हुई साँझ की तरह !
क्यों निरंतर याद करते हो ,
उन लौट कर न अाने वाले पलों को ,
जब कोई देता था दस्तक ,
तुम्हारे बंद दरवाजों को ,
तब ये सांकल भी करती थी ,
इतराते हुए अभिमान से ,
एक गर्वोक्ति भरा निनाद ,
और ये बंद दरवाजे भी ,
किसी मद मे झूमते , बहकते ,
करते थे खुलते समय ,
न जाने कितने ध्वनि अावर्त !

परन्तु तब इन बंद दरवाजों मे ,
पलती थी अपेक्षाओं और सपनों को ,
दिशा देने वाली ढेरों संभावनाएं ,
उन्हें पूरा कर सकने की जिजीविषा ,
सामर्थ्य का अभेद्य सा कवच ,
जीवंतता भी ढूंढती थी तब ,
इनमें अपने भविष्य की योजनाएं !
और जाते हुए अनजान पल भी ,
तब देते थे इन बंद दरवाजों को ,
सहमते हुए निरंतर दस्तक !

पथिक ! अब तुमने द्वार खोल दिए हैं ,
परंतु तुम अनभिज्ञ हो इस सत्य से ,
खुले दरवाजे हो जाते हैं अर्थहीन ,
क्योंकि नहीं देता इन्हें कोई दस्तक !
कदाचित तुम नहीं जानते ,
खुले दरवाजों के भीतर ,
रिसते हुए स्याह सन्नाटे मे ,
जीवन की सरसता से अनभिज्ञ ,
केवल अभागे भूत रहते हैं !
जिनमें न तो साँस लेती हैं ,
वर्तमान की मनोरम जीवंतता ,
और ना ही जन्म लेती हैं ,
भविष्य की मनोरम कल्पनाये ,
जिनकी नहीं है कोई सार्थकता ,
जिनके सामर्थ्य पर हैं ढेरों प्रश्नचिन्ह !

इसीलिए कहता हूँ बार-बार ,
तुम्हें लाना होगा फिर से अावेग ,
बनानी होगी सार्थकता भरी उपयोगिता ,
देना होगा अर्थ इन गतिमान साँसों को ,
करना होगा भगीरथ प्रयास ,
फिर से पाने को उपादेयता !
जान लो यह सांसारिक सत्य ,
यदि तुमसे अपेक्षाएं नहीं होंगी ,
तो उपेक्षा अवश्य वरण करेगी !
और नहीं देगा कोई दस्तक ,
तुम्हारे निर्जीव होते द्वार को ,
इसलिए हठ मत करो ,
सार्थकता और उपादेयता के लिए ,
फिर से करो सार्थक और जीवंत संघर्ष !
पथिक ! तुम अंतिम साँस तक करो ,
एक सार्थक और जीवंत संघर्ष !!

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s