अब इन रिश्तों में वो संज़ीदगी वो गहराई कहाँ ,
अब तो दुनियाँ के दिखावे को ये निभाए जाते है।
ख़ुद-ब-ख़ुद अपनों के रंजोग़म दिल को झकझोरें ,
ऐसे फ़लसफ़े अब बस किताबों में मिला करते हैं।
किसी के किये को याद रखना बहुत ही मुश्किल है ,
लोग बेरुख़ी का कुछ न कुछ बहाना बना ही लेते हैं।
जाने क्यों फिर भी तड़पता है ये दिल उनके लिए ,
जिनकी यादों के मंज़र रोज़ नेज़े से चुभा करते हैं।