अपलक नेत्रों से देखता हूँ ,
सूर्य के तेजोमय रक्तवर्ण ललाट में ,
स्वर्णिम परिधान में सुसज्जित ,
किरणीली आभा से सुशोभित घूँघट में ,
लजाती अरुणिमा का विलक्षण समर्पण ,
और उनकी प्रेममय आभा से प्रस्फुटित ,
दिग-दिगन्त में अप्रतिम कान्ति बिखेरता ,
यह मनोहारी देदीप्यमान आलोक !
बिहँसते पक्षियों का कलरव ,
जलधाराओं की मधुरिम ध्वनि तरंगें ,
पर्वत शिखरों का नयनाभिराम दृष्टव्य ,
वासंती हवाओं के हृदयस्पर्शी प्रहसन ,
झूमती लताओं का मदमत्त नृत्य ,
हरे-भरे वृक्षों का लुभाता आह्वान ,
भ्रमरों के लजाती कलियों से मनुहार ,
सुगन्धित प्रसूनों का मर्मस्पर्शी आवेग ,
अन्तस को गहराई तक जैसे करते हों स्पर्श !
सुनता हूँ अंतश्चेतना को झकझोरते ,
इनके मन्द-मन्द किन्तु अर्थपूर्ण स्वर ,
मानो अलसाई आँखों से करते हों संवाद ,
सृजन की अभिलाषा संजोये ,
भोर ने दस्तक दे दी है !
भोर ने दस्तक दे दी है !!