विलुलित नेत्रों से देखता हूँ ,
कोलतार पथों से सुसज्जित ,
बहुमंजिली इमारतों में अंगड़ाई लेते ,
नाना प्रकार की सुख-सुविधाओं के उद्घोषक ,
आलीशान भवनों की कतारों से ,
नई सभ्यता की दुंदुभी बजाते ,
महानगरों और नगरों से दूर ,
किसी अजन्मे प्रारब्ध की तरह ,
विपन्नता और अभावों की नियति में ,
साँस लेते अनगिनत लोगों के हुजूम को !
जिनके स्वप्न-खग पंखहीन होकर ,
आर्त-स्वर से करते हैं आज भी ,
बस जीने भर के लिए संसाधनों की गुहार !
तुम्हीं बताओ मैं कैसे गीत लिखूँ ?
यौवन के मिलन और मनुहार के ,
सावन की मादक फुहार के ,
इठलाती रिमझिम बरसात के ,
अरुणिमा के स्वर्णिम घूँघट में लजाने के ,
ताराकिणी निशा के चाँद के साथ बिहँसने के ,
पक्षी-युग्म के कलरव करने ,
और चौंच-चौंच में निबद्ध होने के !
जब देखता हूँ उस अनमने और सहमे से ,
अर्द्ध-नग्न असंख्य बचपन को ,
जिसने नहीं बुने सपने खिलौनों के ,
नहीं देखे ख़्वाब शैतानियों और दुलार के ,
परियों की कहानियों से अनजान ,
जिनके हठ करने और मचलने के पल ,
विपन्नता और प्रताड़ना का दानव ,
लील गया हो बड़ी क्रूरता से ,
किसी कालग्रास की तरह !
जिनके अभिशप्त बचपन ने सीधे ही ,
सुकुमारता की मखमली सेजों से कोसों दूर ,
केवल जीने भर की अपेक्षाओं में ,
किशोरावस्था और यौवन को लाँघकर ,
सीधे ही प्रौढ़ता की विवशता ओढ़कर ,
लिख दी हो अपनी नियति की ,
चिरकाल से दोहराई जाती गाथा !
तुम्हीं बताओ कैसे लिखूँ मैं गीत ?
वो रूठने और मनाने के ,
तुम्हारे सौंदर्य और श्रृंगार के ,
आरजुओं की मखमली चादर पर ,
तुम्हारे संसर्ग में सिमटे पलों के ,
जब देखता हूँ असंख्य ललनाओं को ,
किसी फटी-मैली कुचली सी ,
तन ढकने की जुगत करती ,
उस मलिन सी पुरानी धोती में !
जिनके सिर पर रखा दी जाती है असमय ही ,
गारे और मिट्टी के बोझ की नियति !
जिनके जीवन की नित प्रताड़ना ,
ले जाती है इनसे दूर बहुत दूर ,
सुकुमारता के स्वप्नों की सुर-लहरी ,
और उनकी मादकता के ध्वनि-आवर्त !
इसीलिये कहता हूँ सुनो यह प्रतिध्वनि !
अपना जयघोष स्वयं करने की जगह ,
बदल डालो इन असहायों की नियति ,
परिवर्तित कर दो किसी स्याही से ,
चिर काल से निरंतर चला आ रहा ,
इनके भाल पर लिखा इनका प्रारब्ध !
इन्हें भी स्वप्न-खगों की उड़ान का ,
दे दो कोई आशाओं से पल्लवित आकाश !
फिर मैं भी तुम्हें गीत दूंगा ,
मृदुलता से अभिसिंचित सुकुमारता का ,
यौवन की उड़ान का , बिहँसते स्वप्नों का ,
आनंद की अप्रतिम अनुभूतियों का।