ये अजीब सा शांत और बेजान घर ,
अपनी निस्तब्धता में कुछ कहता है !
अब यहाँ किलकारियाँ नहीं गूँजती ,
कोई शोरगुल अब यहाँ नहीं होता ,
ना ही खिलौने बिखरे दिखते हैं ,
ना ही किताबें फ़र्श पर इधर -उधर दिखती हैं ,
ना ही किसी कॉपी पर स्याही बिखरती है ,
ना ही काँच के गिलास फूटते हैं ,
ना ही उनमें भरा दूध बिखरता है ,
ना ही खाना खाने के लिए मनुहार होता है ,
ना ही कुछ ख़ास बनाने की ज़िद होती है ,
ना ही स्कूल बैग सजते-सँवरते हैं ,
ना ही जल्दी उठने की पुकार होती है ,
ना ही वो रिक्शा वाला अब कोई दस्तक देता है ,
वो जूतों की धूल अब फ़र्श गन्दा नहीं करती ,
बस फर्नीचर पर लगी हवाओं की धूल ,
हर रोज़ एक बाई पोंछ जाती है ,
कभी-कभार टेलीविजन पर ,
किसी बेजान से सीरियल की आवाज़ ,
या फिर पुराने फिल्मी गानों की स्वर-लहरी ,
इसकी निस्तब्धता तोड़ जाती है ,
निष्प्राण से इस घर को कोई आवाज़ दे जाती है ,
अपने माजी को तलाशता ये घर ,
खोया-खोया सा कुछ बुदबुदाता है ,
ध्यान से सुनो इस लाचार घर की पुकार ,
अपनी बेबसी में ये कुछ कहता है !
सचमुच ये कुछ कहता है !!