एक अजनबी अनजान सा चेहरा ,
उभरता है अँधेरों की धमनियों को सहलाता ,
तिमिर के तिलिस्म को तोड़ता ,
जीवन-राग को छेड़ती किसी रागिनी सा ,
या फिर हवाओं की शीतलता को पिरोता ,
किसी विमन प्रतीक्षातुर धुँधलके को ,
द्युतिमय मुख पर सजती ,
कपोलों की अरुणिमा सी लालिमा से ,
और मृगनयनों की किरणीली लहरों से ,
या फिर किसी पाषाणी चट्टान की ,
कोई द्युति -आकृति की सी चमक बनकर भेदता ,
बुदबुदाता किसी कालगृह में लुप्त ,
जड़ चित्र-कृतियों की गाथा ,
या किसी तुंग शिखर पर गूँजती ,
किसी मधुरिम मनाेरम तान से ,
किसलयों और पल्लवित प्रसूनों को ,
मानो मनुहार करके असमय जगाता ,
अपनी सुकुमारता की वासंती सुवास से ,
दिशाओं और दिक् पालों को झकझोरता ,
यूँ ही उभरता है नीरव अन्धकार में ,
धवल चाँदनी को भी लजाता ,
एक अजनबी अनजान सा चेहरा !